पं दीनदयाल उपाध्याय पुण्य तिथि पर विशेष

हरीश मिश्र

हिंदी साहित्यकार स्व. धर्मवीर भारती जी ने अपने उपन्यास अंधा युग में लिखा है... युयुत्सु ने महाभारत युद्ध में सत्य और न्याय की रक्षा के लिए कौरव पक्ष छोड़कर पांडव पक्ष ग्रहण करने का विवेकपूर्ण निर्णय लिया था। उसने माना कि जिसे प्रभु जाना था, उसने भी युद्ध में जीत के लिए मर्यादा तोड़ी है। श्री कृष्ण ने कुरुक्षेत्र के मैदान में घोषणा की थी कि जिधर मैं हूं उधर धर्म है, जिधर धर्म है, उधर मैं हूं। युयुत्सु ने यहीं किया, पर युयुत्सु को क्या मिला ? पांडव पक्ष ग्रहण करने से न केवल उसके अन्तर मन में वितृष्णा पैदा हो जाती है, बल्कि अपनी मां द्वारा भी उसे उपेक्षा एवं घृणा मिलती है। अपने को विसंगत स्थिति में पाकर युयुत्सु स्वयं को छला हुआ महसूस करता है, उसका मन आहत हो जाता है कि पांडव भी सत्य के पक्षधर नहीं है।

    आज के राजनैतिक परिवेश में अंधा युग की आहट पुनः सुनाई देती हैं। इस देश की कोरोना महामारी से पीड़ित रोजगार से वंचित राष्ट्रवादी युयुत्सु रूपी प्रजा ने कौरव रुपी भ्रष्ट एक परिवार की हुकुमत के "अंत के लिए अटल संकल्प से दीनदयाल के शिष्यों को रामराज स्थापना के लिए बहुमत देकर अभिषेक किया। दीनदयाल के वंशजों ने राष्ट्र हित में साहसिक निर्णय लिए हैं... तीन तलाक से मुक्ति... धारा 370 की समाप्ति... राम मंदिर निर्माण प्रारंभ... नागरिकता कानून जैसे कठोर निर्णय स्वागत योग्य कदम है। लेकिन आज एक यक्ष प्रश्न पूछना है, क्या दीनदयाल के वंशज रामराज स्थापित कर सके ? राजनैतिक युद्ध जीतने के लिए मर्यादित आचरण कर रहे है ? नहीं। राजनीतिक क्षेत्र में दीनदयाल के शिष्य घोषणा कर रहे हैं... जिधर दीनदयाल के उत्तराधिकारी... उधर राजनैतिक धर्म ..जहां दीनदयाल के उत्तराधिकारी नहीं.... वहां राजनैतिक  अधर्म इस राजनैतिक धर्म- अधर्म के द्वंद्व युद्ध में अर्थ व्यवस्था. शिक्षा चिकित्सा... रोजगार.... भ्रष्टाचार समाप्ति की बातें नहीं की जा रही। क्योंकि सत्ता में आने से पहले कितनी भी शुचिता की बात की जाए... सत्ता प्राप्त करने के लिए सभी नियम क्षण भर में धराशाई हो जाते हैं... इसलिए राजनीति में धर्म नहीं होता... विधायकों की खरीद-फरोख्त को दीनदयाल के वंशज त्याग की प्रतिमूर्ति के रूप में स्थापित कर राजनीति का धर्म स्थापना करने के लिए जनता के बीच जाते हैं और जनता दीनदयाल के वंशजों पर विश्वास कर रामराज स्थापना के लिए अभिषेक करती हैं। यदि अभिषेक करने वाली जनता की भावनाओं को नहीं समझा गया तो जो जनता एक परिवार की हुकूमत को उखाड़ फेंक सकती है, उस जनता का कभी भी इस अंधे युग की सत्ता से मोह भंग हो सकता है। इसलिए दीनदयाल के वंशजों को समय रहते शिक्षा चिकित्सा... रोजगार..... भ्रष्टाचार समाप्ति पर कार्य करना होगा जिससे दीनदयाल की सत्ता कायम रहे।

लेखक ( स्वतंत्र पत्रकार )
 

 

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